(पहला विषय)

देवी-देवताओं की पूजा

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━


शाहिदा : नमस्ते, मैंने आपके कुछ लेख पढ़े हैं, और उनके द्वारा मुझे ऐसा लगता है कि आपको आपके धार्मिक शास्त्रों का उचित ज्ञान प्राप्त है, क्या ये सच है? 


वेदांत : जी! मैंने न केवल सनातन हिन्दू धर्म, बल्कि ईसाई, इस्लाम, जैन, बौद्ध जैसे लगभग सभी मज़हबों की पुस्तकें भी पढ़ी हुई हैं।


शाहिदा : मैं आपके सनातन हिन्दू धर्म को ठीक से समझना चाहती हूँ। हालांकि मैं एक मौलवी की बेटी हूँ, मेरे पिता मस्जिद में अज़ान देते हैं। लेकिन मैं अध्यात्म के विषय को लेकर कई वर्षों से उलझी हुई हूँ। कई बार जब मैं किसी मौलवी के भाषण सुनती हूँ तो मूझे लगता है कि इस्लाम ही सबसे सच्चा मज़हब है, वहीँ कई बार मूझे इस्लाम पर संदेह भी होता है। इस्लाम की मान्यता और नियमों में मूझे बहुत कुछ ऐसा दिखता है, जो ईश्वर के आदेश जैसा बिलकुल नहीं लगता। बल्कि कई बार ऐसा लगता है जैसे वो किसी कम बुद्धि वाले व्यक्ति या छोटे से बच्चे ने बनाये हों। इसलिए मैं हर मज़हब के बारे में ठीक से जानना चाहती हूँ। मैं बाकी सब मज़हबों को तो काफी जान चुकी हूँ, अब केवल हिन्दू धर्म ही समझना रहता है। हिन्दू धर्म को जानने के लिए मैंने कई पंडितों से भी बात करी, पर मूझे अपने प्रश्नों का सही उत्तर नहीं मिल पाया। हर पंडित एक ही विषय को अलग-अलग प्रकार से बताते हैं, वो भी बिना किसी प्रमाण के। तो क्या आप मूझे सनातन हिन्दू धर्म के बारे में तर्क और प्रमाणों के साथ विस्तार से बता सकते हो? 


वेदांत : बिलकुल, आप सनातन धर्म से सम्बंधित जो कुछ भी पूछना चाहते हो, पूछ सकते हो। मैं आपके हर प्रश्न के सटीक उत्तर देने का प्रयास करूंगा, लेकिन केवल एक शर्त पर।


शाहिदा : कैसी शर्त? 


वेदांत : मैं जो भी बताऊंगा, उसे आपको बिलकुल खुल्ले दिमाग़ से सोचना और समझना होगा। धर्म और अध्यात्म के विषय में, मैं हर बात शास्त्रों के अनुसार ही करता हूँ। मेरे हर दावे में शास्त्रों के प्रमाण होते हैं। इसलिए आपको चाहिए कि अगर किसी विषय की आपको उचित जानकारी नहीं है, तो उसे समझने का प्रयास करें। अहंकार के वश में होकर व्यक्ति वास्तविक सत्य को जानने से चूक जाता है, और अन्धविश्वास को ही सत्य मानने लगता है। ऐसे व्यक्ति का पूर्णतः पतन हो सकता है। 


शाहिदा : मैं निश्चित रूप से आपकी हर बात को ठीक प्रकार से समझने का प्रयास करूंगी। लेकिन मुझे आप जो कुछ भी बताओगे या समझाओगे, उसके शास्त्रों से प्रमाण भी अवश्य देना। 


वेदांत : तो बताइये क्या जानना चाहते हो आप? 


शाहिदा : सबसे पहले तो मूझे ये बताइये कि सनातन या हिन्दू धर्म के वास्तविक ईश्वर कौन हैं? 


वेदांत : सनातन धर्म में वास्तविक परम ईश्वर ‘कृष्ण’ को बताया गया है। वैसे तो हिन्दू धर्म में कई सारे सम्प्रदाय हैं जैसे - शैव, वैष्णव, आर्य समाज, अद्वैतवाद आदि। शैव लोग ‘शिवजी’ को परम ईश्वर यानी वास्तविक भगवान मानते हैं। वैष्णव लोग ‘विष्णु’ या ‘राम तथा कृष्ण’ को परम ईश्वर मानते हैं। आर्य समाज वाले सर्व्यापी ‘ॐकार’ को परम ईश्वर मानते हैं।  वहीँ अद्वैतवादी तो एक प्रकार से नास्तिक ही होते हैं। पर सच्चाई ये है कि सनातन हिन्दू धर्म में कृष्ण ही परम ईश्वर हैं। उनके इलावा किसी को भी परम भगवान मानना पाप तो नहीं है, पर मूर्खता अवश्य है। जिस प्रकार किसी भी व्यक्ति के बहुत सारे पिता नहीं हो सकते, उसी प्रकार परम भगवान भी बहुत सारे नहीं हो सकते, ऐसा मेरा मानना है।


शाहिदा : आपके में कोई शिव की पूजा करता है, कोई दुर्गा की पूजा करता है, तो कोई अन्य देवी-देवताओं की पूजा करता है। और हर कोई यही कहता है कि हमारे भगवान ही वास्तविक हैं। 


वेदांत : शिवशक्ति यानी शिव और माता दुर्गा की पूजा करना गलत नहीं है। हमें शिव तत्व में और कृष्ण तत्व में अंतर नहीं समझना चाहिए, क्योंकि शिव भी कृष्ण के ही विस्तार स्वरुप हैं। लेकिन किसी भी देवी-देवता को ईश्वर मान लेना, ये अज्ञानता के कारणसे होता है। हिन्दू धर्म में कई सारे सम्प्रदाय हैं जैसे इस्लाम में शिया, सुन्नी, बरेलवी आदि होते हैं। ईसाइयत में कैथोलिक, ऑर्थोडॉक्स, प्रोटेस्टेंट आदि होते हैं, उसी प्रकार हमारे में - शैव, वैष्णव, आर्य समाज, अद्वैतवाद आदि, ये सारे सम्प्रदाय होते हैं। हो सकता है ये बात आप पहली बार ही सुन रहे हों, कि हिन्दू धर्म में केवल एक ही भगवान हैं। क्योंकि विश्व के अधिकतर लोगों की मान्यता ये है कि हिन्दू लोग 33 करोड़ देवी-देवताओं को भगवान मानते हैं। हालांकि इसका अर्थ ये नहीं है कि जो दूसरे देवी-देवताओं को भगवान मानते हैं, उनको हम वैष्णव लोग पापी या बुरा मानते हैं। क्योंकि शास्त्रार्थ में हमारा मतभेद हो सकता है, पर मनभेद नहीं।


शाहिदा : लेकिन अगर आपके अनुसार कृष्ण ही वास्तविक भगवान हैं, तो दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करना अवैध होना चाहिए ना?

वेदांत : नहीं, क्योंकि देखा जाए तो वो लोग भी उन्हीं को मान रहे हैं जो देवी-देवता हमारे शास्त्रों में श्रेष्ठ बताएं गए हैं। पर ये विषय जानने के लिए सबसे पहले आपको देवी-देवताओं और भगवान में अंतर समझना चाहिए। देवी-देवता एक पद है, जिस प्रकार से किसी कंपनी में कोई सी.ई.ओ होता है, कोई सी.ऐफ.ओ होता है, तो कोई मैनेजर होता है। उसी प्रकार से इस विश्व में उपस्थित सभी प्राकृतिक वस्तुओं पर भगवान ने देवी-देवताओं को अधिकार दिया है। यहाँ तक कि अगर आप स्वयं भी ये संकल्प कर लो कि मुझे देवी-देवताओं का पद प्राप्त करना है, तो कुछ जन्मों की तपस्या के प्रयास के बाद आपको भी ये पद मिल सकता है। ये पद प्राप्त करने के बाद देवी-देवताओं को बहुत सम्मान मिलता है, और मिलना भी चाहिए क्योंकि उन्होंने श्रम किया होता है।


शाहिदा : तो देवी-देवता फरिश्तों के जैसे हैं?


वेदांत : नहीं, देवी-देवता अलग प्रकार का दर्जा है। फरिश्तों को आप देवदूत कह सकते हो, यानी देवी-देवताओं के सेवक।


शाहिदा : पर किसी भी देवी-देवता की पूजा करना और उनसे कुछ मांगना ठीक कैसे हो सकता है? हम मुसलमानों के ईश्वर ‘अल्लाह’ ने तो किसी भी दूसरे की पूजा करने की अनुमति नहीं दी है। हमारे में कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करता है, उसे जहन्नुम यानी नरक में डाल दिया जाता है और बहुत भयंकर दण्ड दिया जाता है।


वेदांत : लेकिन हमारे धर्म में भगवान समझदार हैं और घमंडी तथा क्रूर नहीं हैं। वो उन लोगों को नरक में नहीं डालते जो लोग दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। क्योंकि भगवान को विश्व में सबसे अधिक दयावान कहा जाता है, अगर भगवान ने इस प्रकार का कार्य किया तो इससे वो दयालू बिल्कुल नहीं कहलायेंगे। बल्कि हमारे दृष्टिकोण से ऐसा करने पर तो भगवान एक घमंडी राक्षस के समान कहलायेंगे। हमारे भगवान केवल स्वयं की प्रशंसा में बोलने के लिए ही नहीं, वास्तव में भी दयालु हैं। इसलिए सनातन धर्म का सिद्धांत समझाने वाली सर्वश्रेष्ठ पुस्तक ‘भगवद गीता’ के अध्याय 9 श्लोक 23 में कृष्ण कहते हैं कि “जो लोग दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, वो लोग भी एक प्रकार से मेरी ही पूजा करते हैं, पर वो लोग ऐसा अप्रत्यक्ष रूप से करते हैं"।


शाहिदा : किसी दूसरे देवी-देवता की पूजा, कृष्ण की पूजा कैसे हो सकती है?


वेदांत : क्योंकि ठीक से देखा जाए तो भगवान कृष्ण ही वास्तविक परम ईश्वर हैं, और जब भी हम किसी एक ईश्वर की बात करते हैं तो कृष्ण ही संबोधित होते हैं। जब हम किसी सबसे अधिक दयावान व्यक्ति की बात करते हैं तो भी हमारे मन में भगवान कृष्ण की छवि ही बनेगी। ऐसे ही जब हम सर्वशक्तिमान ईश्वर की बात करेंगे, तब भी नाम चाहे कुछ भी लें पर अप्रत्यक्ष रूप से तो भगवान कृष्ण का ही स्मरण होगा। इसके इलावा देवी-देवताओं को शक्ति तो कृष्ण से ही प्राप्त होती है, तथा देवताओं की पहचान भी केवल अपनी शक्ति के कारण से ही होती है। तो जब हम किसी दूसरे देवता की पूजा करते हैं, तब एक प्रकार से हम कृष्ण की ही पूजा करते हैं। हालांकि ऐसा करना पूर्ण रूप से उचित तो नहीं है, पर उतना अधिक गलत भी नहीं है जितना इस्लाम और दूसरे अब्राहमिक मज़हबों का पालन करने वाले लोग मानते हैं। 


शाहिदा : पर ईश्वर ये कैसे सहन करेंगे कि उनके स्थान पर हम किसी और को ईश्वर मानने लगें? क्या आपके पिता ये सहन कर पाएंगे कि आप किसी अन्य व्यक्ति को अपने पिता मानने लगो? 


वेदांत : अवश्य नहीं, लेकिन मेरे पिता इतने क्रूर या राक्षस स्वभाव के नहीं हैं कि मेरी अज्ञानता और नादानी के लिए वो मुझे हमेशा के लिए नरक जैसे भयंकर स्थान में भेजकर दण्ड देंगे। आप लोगों ने तो ईश्वर को अकारण एक खलनायक समझ लिया है, जो अपनी प्रशंसा और पूजा करवाने के लिए व्याकुल हो चूका है। जबकि वास्तव में ईश्वर ऐसे बिलकुल भी नहीं हैं।


शाहिदा : इस्लाम के अनुसार तो जो अल्लाह को ईश्वर और इस्लाम के संस्थापक ‘मुहम्मद’ को अंतिम पैगम्बर नहीं मानता वो मनुष्य जहन्नुम में जाता है। जहन्नुम में उसे बहुत कड़ा दण्ड मिलेगा। आग में डाल दिया जाएगा, पहाड़ो से फैंका जाएगा, उबलता हुआ पानी-पिलाया जाएगा। ऐसे ही बहुत कष्ट दिया जाएगा, और वो भी हमेशा बार-बार ऐसा होगा काफ़िर के साथ। काफ़िर उसे कहते हैं जो व्यक्ति इस्लाम की मान्यता और नियमों का पालन नहीं करता।


वेदांत : केवल इस कारण से कि मैंने इस्लाम में सबसे पवित्र पुस्तक कही जाने वाली ‘क़ुरान’ में बताए अल्लाह को ईश्वर मानने से इंकार कर दिया और मुहम्मद को अंतिम पैगम्बर मानने से इंकार कर दिया, तथा कुछ ऐसे नियमों को मानने से इंकार कर दिया जो मानने लायक भी नहीं हैं, इसका इतना बुरा दण्ड होगा जो कोई तुच्छ मनुष्य भी नहीं सोच सकता? तो फिर क्या इसका अर्थ ये नहीं हुआ कि आपके अनुसार ईश्वर एक घमंडी और क्रोधी यानी गुस्सैल व्यक्ति हैं? और अगर ऐसा है तो क्या एक घमंडी तथा गुस्सैल व्यक्ति को ईश्वर मानना उचित है? क्या आपको ऐसा लगता है जैसे उन्हें हमसे द्वेष यानी नफरत है? जबकि मेरे अनुसार द्वेष करने वाले तो भगवान के भक्त भी नहीं हो सकते, भगवान तो दूर की ही बात है। कृप्या ईश्वर को एक राक्षस के जैसे मत समझो, वो तो परम दयालु हैं और उनके लिए सारा संसार एक सामान है। संसार के किसी भी व्यक्ति को जब दर्द होता है, तो सबसे अधिक कष्ट भगवान को होता है। और आप अज्ञानता के कारण ये समझते हो कि, भगवान इतने क्रूर हैं कि किसी अन्य की पूजा करने के कारण हमें हमेशा के लिए नरक में इतने भयंकर कष्ट देंगे।