(दूसरा विषय)
दो मुख्य सिद्धांत
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शाहिदा : आप ऐसा कहकर इस्लाम का और हमारे ईश्वर का अपमान कर रहे हो।
वेदांत : मैं कभी किसी पंथ या इष्ट का अपमान नहीं करना चाहता, पर इस्लाम को ठीक से पढ़ने पर आप समझोगे कि इस्लाम में बताए गए नियम हम लोगों के लिए नहीं है। वो लोग बहुत ही असभ्य और घटिया विचारों वाले थे जिनके लिए इस्लाम या अन्य मज़हबों के नियम आये थे। दरअसल महापुरुष लोग अनेकों प्रकार से असभ्य लोगों में थोड़ा सुधार करने का प्रयास करते हैं, और मूझे लगता हैं कि शायद मुहम्मद और जीसस जैसे पैगम्बरों ने भी ऐसा ही किया है। जैसे सनातन धर्म के भी मुख्य तौर पर दो सिद्धांत होते हैं, एक प्रकृति का और दूसरा वेदांत का। वेदांत का अर्थ पूर्ण अध्यात्म होता है, और पूर्ण अध्यात्म का अर्थ संसार और प्रकृति को विशेष न समझकर स्वयं को आत्मा के रूप में समझना होता है। जो लोग प्रकृति को और इस भौतिक शरीर को ही विशेष समझते हैं वो अवश्य ही मूर्ख हैं। वहीँ प्रकृति का सिद्धांत उन लोगों के लिए है जो या तो मूर्ख हैं, या फिर बहुत अधिक समझदार नहीं हैं। महापुरुष लोग ऐसे लोगों को अध्यात्म तक पहुँचाने के लिए प्रकृति के सिद्धांत का अलग-अलग प्रकार से प्रयोग करते हैं। थोड़ा बहला-फुसलाकर स्वर्ग या इस्लाम के स्वर्ग ‘जन्नत’ का लालच देकर, या फिर नरक अथवा जहन्नुम का डर दिखाकर, ज्योतिष और तंत्रमन्त्र आदि-इत्यादि से आकर्षित करके। महापुरुष हम लोगों को अध्यात्म के सिद्धांत तक पहुँचने की सीढ़ी पर थोड़ा-थोड़ा करके चढ़ाते रहते हैं। उदाहरण के लिए जो मनुष्य बहुत सारी स्त्रियों के साथ अवैध संबंध रखता हो, उसे स्वर्ग की स्त्रियां ‘अप्सराओं’ या ‘हूरों’ का लालच देकर रोक देना। जो एक पत्नी से संतुष्ट न होकर अनेकों महिलाओं से अवैध संबंध रखता हो, उसे 3-4 पत्नी की अनुमति दे-देना। यही तो इस्लाम ने भी किया है, अत्यंत क्रूर अपराधियों जैसे विचार रखने वाले मनुष्य को नरक के दण्ड बताकर भयभीत करना आदि-इत्यादि। दरअसल इस सिद्धांत के अनुसार जो व्यक्ति जितना समझ सकता है, उसे उतना ही समझाया जाता है। क्योंकि अगर उसे उसकी क्षमता से अधिक बता दिया जाए तो उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। थोड़ा और सरल भाषा में समझो, अगर कोई बच्चा क्रोध में है तो उसे लॉलीपॉप, टॉफी, चॉकलेट के द्वारा शांत किया जा सकता है। पर अगर कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति क्रोध में हो, तो क्या उन्हें इन सब वस्तुओं से कोई प्रभाव पड़ेगा?
शाहिदा : नहीं।
वेदांत : और पहली कक्षा के विद्यार्थी को अगर आप बारहवीं कक्षा के सिद्धांत पढ़ाओगे, तो क्या उसे कुछ समझ आएगा?
शाहिदा : कभी नहीं।
वेदांत : ऐसे ही जिन लोगों के बीच इस्लाम या बाकी अब्राहमिक मज़हब आये थे, वो बहुत अधिक असभ्य और नासमझ विचारों वाले थे। उन अज्ञानी तथा मूर्ख लोगों को अगर पूर्ण अध्यात्म का ज्ञान दिया जाता, तो उन्हें कुछ समझ नहीं आता। इसलिए हिन्दू और सिख धर्म के इलावा, बाकि सब पंथों ने ऐसे लोगों में केवल थोड़ा बहुत ही सुधार करने का प्रयास किया था। पर हिन्दू और सिख धर्म में वास्तविक अध्यात्म के विषय में भी विस्तार से समझाया गया है। हालांकि इस्लाम में भी अध्यात्म के अंश मिलते हैं, जो ‘सूफ़ी’ मुसलमान लोगों ने हमें समझाने का प्रयास किया था। मगर शिया, सुन्नी आदि सम्प्रदाय के लोग जो अपने आपको इस्लाम का वास्तविक ठेकेदार समझते हैं, उन्होंने अधिकांश सूफ़ी लोगों को जान से ही मार दिया। या फिर उनके बताये सिद्धांत को इस्लाम के विरुद्ध बताने लगे। क्योंकि मेरे अनुसार सूफ़ी मुसलमानों के इलावा इस्लाम के लगभग सभी सम्प्रदाय अज्ञानता और मूर्खता से भरपूर है। सिर्फ सूफ़ी लोग ही समझदारों वाली बातें किया करते थे, क्योंकि बस वो लोग ही इस्लाम की वास्तविकता जानते थे। उनको ये पता था कि इस्लाम के कौनसे नियम केवल सांकेतिक तथा परिस्थितियों के अनुसार थे, और कौनसे आध्यात्मिक। पर अधिकांश मुसलमानों ने ज्ञानी और तर्कशील सूफ़ी मौलवीयों से अधिक, अज्ञानी और मुर्ख सम्प्रदाय के मौलवीयों को सुनना पसंद किया। यही कारण है कि आज विश्वभर में इस्लाम को आतंकवाद और कट्टरता के लिए जाना जाता है।
शाहिद : पर कट्टरता तो हर मज़हब में होती है।
वेदांत : बिलकुल कट्टरता तो हर मज़हब में होती है, बस इस्लाम के ठेकेदारों ने इसका बाकियों से भी अधिक प्रचार कर दिया। और जब कोई भी मज़हब समझ और अध्यात्म के स्थान पर राजनीती, अहंकार और परंपरा की कट्टरता में उलझ जाता है, तब उसका बदनाम होना निश्चित है। आजकल सनातन हिन्दू धर्म को भी कई हिन्दू लोग ही कट्टरता दिखाकर बदनाम करने में लगे हैं। जबकि सनातन में कट्टरता जैसा कुछ नहीं है, ये अब्राहमिक मज़हबों की तरह परंपरा और मान्यता की बेड़ियों के बंधन में बंधा हुआ नहीं है।