मोक्ष का रास्ता - परिचय
मेरा नाम ‘वेदांत कृष्ण दास' है। मैंने ‘मोक्ष का रास्ता’ नामक ये पुस्तक विश्व के सबसे महान आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने वाले ग्रन्थ ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के अध्याय अठारह पर लिखी है। क्योंकि जीवन की सबसे बड़ी जिज्ञासा – "मैं कौन हूँ, मैं क्या करूं, और मुझे अंत में क्या प्राप्त करना है" – का संपूर्ण उत्तर श्रीमद्भगवद्गीता के अठारहवें अध्याय में मिलता है। ये अध्याय गीता का अंतिम चरण नहीं, बल्कि उसका शिखर है, जहाँ जीवन के प्रत्येक कर्म, धर्म, त्याग, और विवेक का अंतिम निर्णय सामने आता है। जब मैंने सम्पूर्ण गीता का मनन किया, तो पाया कि प्रथम अध्याय से सत्रहवें अध्याय तक श्रीकृष्ण अर्जुन को धैर्य, साहस, धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान, आत्मा, प्रकृति, गुण, योग, श्रद्धा और परिणाम के विविध आयामों से परिचित कराते हैं, लेकिन अठारहवां अध्याय उन सभी आयामों को एक सूत्र में पिरोकर जीवन की संपूर्ण दिशा निर्धारित करता है। पहले अध्याय में अर्जुन का मोह दिखता है — वो युद्धभूमि में अपने ही परिजनों को देखकर हतप्रभ हो उठता है; दूसरा अध्याय उसे आत्मा, कर्म और स्थितप्रज्ञता का प्रथम ज्ञान देता है; तीसरे से छठे अध्यायों में कर्मयोग, ज्ञानयोग और ध्यानयोग की व्याख्या होती है; सातवें से बारहवें अध्यायों में श्रीकृष्ण अपने विराट रूप, भक्ति के स्वरूप और स्वयं के ऐश्वर्य को प्रकट करते हैं; तेरहवें से सत्रहवें अध्यायों तक प्रकृति-पुरुष, गुणों, श्रद्धा, दान, आहार, और विवेक-ज्ञान पर विस्तार से चर्चा होती है — लेकिन यह सब जैसे अठारहवें अध्याय की प्रस्तावना है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण हर ज्ञान, हर योग, हर सिद्धांत को एक शुद्ध निष्कर्ष में बदलते हैं — वे बताते हैं कि त्याग कैसा हो, धर्म क्या है, स्वधर्म क्यों सर्वोत्तम है, और मनुष्य किस प्रकार अपने कर्मों से ऊपर उठकर परमशांति और परमगति को प्राप्त कर सकता है। इसी अध्याय में वे स्पष्ट करते हैं कि मनुष्य को न तो कर्मों से भागना है, न उनमें लिप्त होना है, बल्कि उन्हें पूर्ण समर्पण और आत्मबोध के साथ करना है। यही वह बिंदु है जहाँ गीता की शिक्षाएं केवल ज्ञान नहीं रहतीं, बल्कि साधना बन जाती हैं। इस ग्रंथ को लिखते समय मेरा उद्देश्य केवल गीता का भाष्य करना नहीं था, बल्कि उन सभी बिंदुओं को सरल, सजीव, और गूढ़ तरीके से उजागर करना था जिन्हें आज का साधारण मनुष्य भी अपने जीवन में अपना सके। ‘मोक्ष का रास्ता’ केवल एक अध्याय की व्याख्या नहीं है, यह एक यात्रा है — मोह से विवेक तक, कर्म से त्याग तक, और भ्रम से ब्रह्म तक की। मैंने इसे सात गहराईपूर्ण भागों में इस तरह विभाजित किया है कि पाठक इसे पढ़ते हुए न केवल गीता के ज्ञान को समझे, बल्कि उसे जी भी सके। संपूर्ण गीता का सार इस एक अध्याय में समाहित है — यही कारण है कि इस अध्याय पर केन्द्रित ये पुस्तक आपके जीवन की दिशा को बदल सकती है।