(पंद्रहवाँ विषय)
आत्मा के गुण
शाहिदा : आत्मा के गुण क्या हैं?
वेदांत : आत्मा के गुण हैं - ईश्वर को सर्वशक्तिमान और अत्यंत दयावान मानना, ईश्वर और प्रामाणिक गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण, प्रेमभाव, दयाभाव, सरलता, क्रोधहीनता, प्रसन्नता, सत्यता, ज्ञान, वैराग्य, चतुराई, धर्म के लिए संघर्ष का भाव आदि। आज के समय में कई लोगों को ये सब कठिन या कदाचित असंभव भी लग सकते हैं, पर वास्तव में ये बिल्कुल संभव है। किंतु तभी जब आप अपने आपको आत्मा के रूप में जानने, और स्वयं के व्यवहार को आत्मा के गुण बनाने के लिए तैयार हो जाएं। ऐसे में अभ्यास के द्वारा स्वयं में ये सब गुण विकसित करना बिलकुल संभव है। कई लोग कहते हैं कि कलयुग में ये सब गुण संभव नहीं है, पर अगर ऐसा होता तो आचार्य जन इसका साधन और अभ्यास न बताते। स्वयं को पूर्ण रूप से आत्मा के गुण में विकसित कर लेने का अभ्यास भी बहुत अधिक नहीं है, बस आपको वैष्णवों के 4 नियमों का ही पालन करना होगा, और 16 माला का जप करना होगा। वैसे तो सभी आचार्य लोग वैष्णवों के 4 नियमों को इस प्रकार से बताते हैं कि आपको अवैध शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाने, जुआ नहीं खेलना, नशा नहीं करना और मांस नहीं खाना। पर मैं आपकी सरलता के लिए थोड़ा और विस्तार से मुख्य बातें बताता हूँ, ध्यान से सुनो। आपको कभी शराब, सिगरेट, सिगार, तम्बाकू, चाय और कॉफी जैसे नशीली और आदत बन जाने वाली चीज़ों का सेवन नहीं करना है। कभी मांसाहारी, प्याज़, लस्सन, अधिक मसाले वाला, अधिक नमकीन, अधिक तीखी चीज़ों का सेवन नहीं करना है। कभी जुआ खेलना, वैश्यालय यानि रैड लाइट एरिया जाना, पराई स्त्री या पराए पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना जैसे अनैतिक आचरण नहीं करना है। साथ ही आपको किसी भी स्थिति में प्रतिदिन 108 मनकों वाली विशेष तौर पर तुलसी की माला से 16 माला का जाप करना चाहिए। जप के लिए शास्त्रों में एक विशेष महामंत्र बताया गया है, इस मंत्र का जाप करने पर आपको पहले ही दिन से प्रभाव दिखने लगेगा। इससे आपकी भक्ति में रुचि बढ़ेगी। मंत्र है - “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।” जाप सीधे हाथ से करना चाहिए। जाप करने के लिए हाथ की पहली उंगली यानी ‘तर्जनी' उंगली का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना है, दुसरी उंगली यानी ‘मध्यमा' से ही जाप करना चाहिए। माला के पहले मोती पर आपको एक दिव्य नामों वाला अन्य मंत्र भी पढ़ना चाहिए, वो मंत्र है - “जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासआदि गौर भक्त वृन्द।” एक बार 108 मोती पूरे हो जाने पर माला घुमाकर फिरसे ऐसा ही करना होगा, कुल 16 बार। आचार्यों, गुरुजनों के अनुसार माला को लांघना नहीं चाहिए, इसलिए एक माला पूरी होने पर घुमाकर, फिर अगली माला जपनी चाहिए। जब आपमें कृष्णभावनामृत का सूर्योदय होगा तो आप स्वयं भगवान के नाम का जप करने के लिए उत्सुक रहोगे। ऐसे में आपको 16 माला का जप भी कम लगने लगेगा। लेकिन शुरू में तो आप केवल 1 माला भी कर सकते हैं। पर मेरे अनुसार आपको दैनिक कम से कम 4 माला का जप तो करना ही चाहिए। कुछ लोग एक साथ जप नहीं कर पाते, तो वो लोग थोड़ी-थोड़ी देर के अंतर में भी जप कर सकते हैं। बस आपको रात तक नियमित माला का जप पूरा करना होगा। जप करते हुए आपकी पीठ या रीढ़ की हड्डी हमेशा सीधी रहनी चाहिए। आसन लगाकर स्थिरता से जप करने के अभ्यास से, मन में से नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते हैं। जैसे ही आपके मन में से नकारात्मकता नष्ट हो जाएगी, उसी समय से आपको भगवान के नामों का जाप करने, भजन-कीर्तन करने में परम आनंद की अनुभूति होने लगेगी, यही आत्मा का मूल गुण है। और यही परम संतुष्टि भी है। पर ये मन की मलीनता बहुत विचित्र है, क्योंकि ये मरकर फिरसे जीवित होजाती है। पर अगर आप 4 नियमों का पालन और नियमित माला का जप करते रहोगे तो आपमें मलीनता प्रवेश नहीं कर पायेगी। हाँ लेकिन शुरुवात में आपको जाप करने में बहुत कठिनाई हो सकती है। क्योंकि महामंत्र क जाप आपके मलीन मन के साथ में युद्ध करता है, और असैयमता, अनुशासनहीनता तथा मलीन विचारों को निकालकर नष्ट करता है। इसलिए शुरुवात में अक्सर लोग कहते हैं कि जाप करने से उनमें काम, क्रोध, लाभ, अहंकार आदि विकार नष्ट होने के स्थान पर बढ़ते चले जा रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं कि जप करने के कारण उनमें काम वासना और अश्लील विचार बहुत बढ़ गए हैं, उनमें जाप करते हुए भी अश्लील विचार आते है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस जन्म और पूर्व, अनेकों जन्मों की चेतना मन में समाई हुई है, जप के द्वारा आपने जीवन में जो भी बुरे कर्म किये हैं, वो सब सामने आने लगते हैं तथा आपको विचलित करने लगते हैं। ऐसे में नाम जाप उसे निकालकर नष्ट करता है, जिसमें 2 दिन से लेकर 2 महीने भी लग सकते हैं। पर एक बार मन की मलीनता नष्ट होने पर आपमें से सारे बुरे विचार भी नष्ट होजाएंगे, और आप पूर्ण पवित्र हो जायेंगे। लेकिन आध्यात्मिक अभ्यास करते रहना चाहिए, तभी भक्ति में स्थिरता बनी रहेगी।
शाहिदा : कई लोग कहते हैं कि माला जाप करने से कुछ नहीं होता। जब ईश्वर ने हमें गिनकर सुख और आनंद नहीं दिये तो फिर हम उनके नामों का जाप गिनकर क्यों करें? बल्कि इससे उत्तम तो हमें पूरा दिन ही भगवान का नाम लेना चाहिए।
वेदांत : जाप करना उन लोगों के बस की बात नहीं है, क्योंकि वो लोग अपने मलीन विचारों और विकारो से पीड़ित हैं। जाप करना सामान्य नहीं है, कोई बहुत शक्तिशाली बुद्धि वाला व्यक्ति ही जाप कर सकता है, ये नपुंसक और निर्बल लोग नहीं कर पाते तो बहाना बनाने लगते हैं। माला से जाप करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि यही वास्तविक वैदिक सिद्धांत है, और स्वयं कृष्ण ने चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतार लेकर सिखाया है। हम लोग मंत्र जाप को गिनते इसलिए हैं कि कही हमारा मंत्र जाप कम न हो जाये। क्योंकि मंत्र जाप सदैव अधिक होना चाहिए कम नहीं होना चाहिए। पर ये जिनकी क्षमता के बाहर है, वो अनेकों प्रकार के कुतर्क देकर बहाना बनाने लगेंगे, उनको लगता है कि वो तुच्छ लोग सबसे उत्तम गुरु परंपरा ‘इस्कॉन’ के गुरुदेव और अचार्यों से भी बड़े ज्ञानी विद्वान हैं।
शाहिदा : और कुछ लोगों का ये भी कहना रहता है कि पूजा-पाठ जाप करने से कुछ नहीं होता मनुष्य को अंदर से अच्छा होना चाहिए, अच्छे कर्म करने चाहिए। तथा केवल घर गृहस्ती संभालनी चाहिए। और गृहस्ती के कारण हमें समय नहीं मिल पता ये सब करने का। जैसे मैं स्वयं भी एक महिला हूँ और गृहनी हूँ, तो हमें 1-2 घंटो तक जाप करने का समय कैसे मिलेगा?
वेदांत : समय मिलता नहीं है बल्कि जिससे प्रेम होता है, उसके लिए समय निकालना पड़ता है। क्या आपको बच्चों को सुबह सुबह उन्हें नहलाकर, ब्रश करवाकर तथा नाश्ता करवाके विद्यालय भेजने का समय नहीं मिलता? और क्या आपको सुबह उठकर ये सब करने में आनंद आता है?
शाहिदा : वो तो न चाहते हुए भी सुबह जल्दी उठकर समय निकालना ही पड़ता है।
वेदांत : क्योंकि वो सब आपको बहुत आवश्यक लगता है, क्योंकि आपको अपने बच्चे से प्रेम है तथा आप जानते हो कि पढ़ाई करने के बाद ही वो एक सम्मानित और धनवान व्यक्ति बन पायेगा। इसलिए न चाहते हुए भी आप अपनी नींद ख़राब करके समय निकालते हो। पर जिनसे आपका वास्तव में अनंत जन्मों का सम्बन्ध है, उसने पुनः मिलने के लिए जो साधन शेष है, उसके लिए आपसे समय क्यों नहीं निकाला जाता? जबकि संसार के बाकी सब लोग आपको एक दिन छोड़ देंगे, जब तक स्वार्थ है अधिकांश तभी तक ही आपका सम्मान है इस संसार में। पर कृष्ण आपको कभी नहीं छोड़ेगा, वो सदैव आपसे साथ रहेगा। भले ही आप उसको जितने भी अपशब्द कहो, गालियां दो तथा उसे ईश्वर मानना ही बंद करदो, फिर भी वो आपका साथ नहीं छोड़ेगा। मैं ये नहीं बोल रहा कि आप अपने गृहस्थ धर्म का त्याग करदो या अपने परिजनों की सेवा मत करो, क्योंकि ऐसा करना तो उल्टा पाप बन जायेगा। बल्कि मैं तो ये कह रहा हूँ कि अपनी दिनचर्या ठीक करो, और सुबह 4 बजे उठकर नहाकर जाप करलो। अगर आप सुबह 4:30 बजे से 16 माला का जाप करना शुरू करोगे तो 6:30 बजे तक तो आपका जप पूरा होजायेगा। इससे आपको दीनचर्या और अन्य कार्य करने में कोई समस्या नहीं होगी। क्योंकि अधिकांश सारे कार्य 6 - 6:30 के बजे के बाद ही शुरू होते हैं। जल्दी सोजाओ और अत्यंत आवश्यक कार्य समझकर जल्दी उठकर माला जाप करो। और अगर एक साथ जप नहीं कर सकते, तो एक-एक करके या दो-दो करके पुरे दिन में 16 माला का जाप करो। कई लोग कहते हैं कि माला जाप करना व्यर्थ है, वो लोग शुद्ध वैष्णव गुरुजनों के द्वारा बताया गए वास्तविक विधि-विधान का पालन करने के स्थान पर, स्वयं के मूर्खों वाले विचार को शेष समझते हैं।
शाहिदा : क्या हम सुबह उठकर बिना नहाये जप कर सकते हैं?
वेदांत : पवित्र तुलसी की माला को बिना स्वच्छ हुए छूना उचित नहीं है। लेकिन हाँ, अगर आप अपनी वर्षों की आदत को नहीं बदल पा रहे तो आप निश्चित रूप से बिना नहाये भी जाप कर कर सकते हो, माँ वृंदा आपको अवश्य क्षमा करेंगी। और आपको भक्ति में वृद्धि करने में सहायता करेंगी। लेकिन मुझे लगता है कि आपको नहाकर जाप करने का, और आदत बदलने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। जब मलीनता को परास्त करके जापशक्ति वास्तविक प्रभाव करना शुरू करदेगी, तब तो आप किसी भी स्थिति में जाप करने के लिए विवश होजाओगे। फिर भगवान के पवित्र नाम का असर इस प्रकार होगा कि दिन-रात आपको भजन, कथा, कीर्तन, में नृत्य, जाप और विग्रह सेवा करने का ही मन करता रहेगा। तब आपका समय और शरीर की आदतों पर ध्यान जायेगा ही नहीं, बल्कि आप किसी भी स्थिति में आध्यात्मिक अभ्यास के लिए समय निकाल लेंगे, और शरीर पर भयंकर कष्ट होने पर भी ध्यान नहीं देंगे।
शाहिदा : अच्छा जैसे मुसलमानों में नमाज़ पढ़ने के समय निश्चित होते हैं, उस प्रकार कृष्ण की आरती करने का समय क्या होता है?
वेदांत : वैसे तो अलग-अलग मंदिरों और घरों में अलग-अलग समय पर आरती करते हैं लोग, और इसमें कुछ बुराई नहीं है। लेकिन आरती करने का सबसे शुभ समय सुबह 5:30 बजे से 6:30 बजे के बीच होता है, और शाम को 7 बजे से 8 बजे के बीच होता है।