(सत्रहवाँ विषय)
शादी विवाह
शाहिदा : शादी करने का वास्तविक कारण क्या है?
वेदांत : शादी स्वयं के आनंद के लिए किया गया समझौता नहीं है, शादी तो किसी दूसरे के आगे समर्पण कर देने की आध्यात्मिक साधना है। 3-4 शादियां करने से उत्तम है कि आप शादी ही मत करो और 3-4 प्रेमिका या प्रेमी (गर्लफ्रैंड या बॉयफ्रैंड) बना लो क्योंकि इसका तात्पर्य आपका लक्ष्य तो वैसे भी अध्यात्म नहीं है। कोई मनुष्य 3-4 शादी करना ही क्यों चाहेगा?
शाहिदा : आज के युग में तो लोग केवल एक ही चीज़ के पीछे पड़े रहते हैं, और उसी के कारण ही शादी करते हैं, यानी काम वासना के कारण। मुझे ऐसा लगता है कि अधिकांश पुरुष तो इसलिए ही एक से अधिक शादी करना चाहते हैं, उनको लगता है कि अलग - अलग महिलाओं के साथ वो प्रसन्न रहेंगे।
वेदांत : लेकिन शादी का अर्थ काम वासना की तृप्ति तो बिल्कुल भी नहीं है, शादी तो एक आध्यात्मिक साधना के जैसे है।
शाहिदा : मौलान लोग बताते हैं कि विश्व में महिलाओं की जनसंख्या कम है जबकि पुरुषों की अधिक है, इसलिए ही इस्लाम में प्रत्येक पुरुष को 4 महिलाओं से शादी करने का आदेश है।
वेदांत : ये बात बिल्कुल बकवास है कि महिलाओं की जनसंख्या पुरुषों से अधिक है। ऐसा कहने वाले लोग केवल अपने मज़हब के मत को सही सिद्ध करने के लिए अनेकों प्रकार के झूठे आंकड़े पेश कर देते हैं, पर ये सच्चाई नहीं है। आज भी विश्व में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है। और अगर महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक भी हो जाए, फिर भी इससे शादी में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
शाहिदा : आप कह रहे हो कि एक से अधिक शादी करने से उत्तम एक से अधिक प्रेमी-प्रेमिका रख लेना है, लेकिन ऐसा करना अवैध संबंध नहीं कहलायेगा?
वेदांत : मैंने ऐसा नहीं कहा कि एक से अधिक प्रेमी-प्रेमिका रखने चाहिए। लेकिन अगर आपको शादी का अर्थ ही नहीं पता तो, शादी करने का क्या लाभ? शादी का जो वास्तविक अर्थ है उसे समझे बिना शादी करना भी अवैध संबंध ही कहलाता है। भले ही आपने फेरे लिए हो, या निकाह पढ़ा हो लेकिन फिर भी आप आध्यात्मिक जीवन में शादीशुदा नहीं माने जाओगे। आध्यात्मिक जीवन में शादी का अर्थ क्या है, ये मैं आपको सरल भाषा में समझाता हूँ। अध्यात्म में अहंकार नहीं होना चाहिए, महानता का गर्व नहीं होना चाहिए, क्रोध नहीं होना चाहिए, सहनशीलता और धैर्य होना चाहिए, मन में काम वासना नहीं होना चाहिए, किसी और के लिए निस्वार्थ यानी बिना किसी लालच के सेवा करने की इच्छा होनी चाहिए। किसी को सुखी रखने के लिए प्रयास करते रहने की भावना होनी चाहिए। और सबसे आवश्यक बात कि अनुशासन होना चाहिए। तो जब कोई व्यक्ति अध्यात्म या भक्ति से जुड़ना चाहता है तब उसे इन सब चीज़ो का पालन करना आवश्यक होता है। फिर अपने पति-पत्नी की सेवा करके और सहनशीलता, धैर्य, विवेक के साथ मनुष्य अपने बुरे विकारों को नष्ट करता है और भक्ति की परम सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। शादी तभी करनी चाहिए जब ‘काम' यानी स्वयं के सुख के लिए एक सामान्य सीमा से अधिक इच्छाएं गीता के दिव्य ज्ञान द्वारा समाप्त हो गयी हो।
शाहिदा : मगर आज के समय में अधिकतर लोग स्वयं के सुख के लिए ही शादी करते हैं।
वेदांत : पर क्या उन लोगों को सुख मिल गया? मुझे तो आज तक कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने सुख प्राप्त करने के लिए शादी करी हो और वो इससे वास्तव में प्रसन्न तथा संतुष्ट हुआ हो। यहाँ तक कि जो विवाहित लोग सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट डालकर ये दिखाते हैं कि वो अपने शादीशुदा जीवन में बहुत प्रसन्न हैं, मैंने सबसे अधिक दुखी उन्हें ही देखा है।
शाहिदा : हाँ ये बात आपने बिलकुल सही करी है, मेरा भी यही अनुभव है।
वेदांत : क्योंकि लोग जिन विषयों में सुख ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं, उनमें वास्तविक सुख नहीं है। यही कारण है कि आज की अधिकतर शादियां सफल नहीं हो रहीं है। शादी करने से पहले ही शादी निभाने के नियमों को जान लेना चाहिए, और सोच समझकर ही शादी करनी चाहिए। अध्यात्म में बने रहने के लिए किसी भी संबंध में ‘काम' प्रवेश नहीं करना चाहिए, साथ ही क्रोध भी नहीं होना चाहिए। काम से मेरा तात्पर्य भोग की इच्छा नहीं है। बल्कि अगर हम किसी भी विषय में अपने जीवनसाथी के द्वारा सुखी होने की या उससे स्वयं की सेवा करवाने की अधिक इच्छा रखते हैं, तो इस सोच को ही शादीशुदा जीवन में काम कहा जाता है। और अगर हम स्वयं किसी भी स्थिति में अपने जीवनसाथी को सुखी रखने की इच्छा करते हैं तो उसे प्रेम कहा जाता हैं। जैसे अगर हम एक कुत्ते और एक कुतिया को एक साथ रहने के लिए छोड़ दें, तो वो केवल भोग करने और लड़ने झगड़ने के सिवा कुछ नहीं करेंगे। मनुष्यता में पति-पत्नी का संबंध कुत्ते-कुतिया के जैसे नहीं होना चाहिए, जैसा कि आजकल अधिकांश वैवाहिक जीवन में हो रहा है।
शाहिदा : शादी किस प्रकार के व्यक्ति के साथ करनी चाहिए?
वेदांत : एक वाक्य में तो मैं यही कहूंगा कि उस व्यक्ति से शादी करनी चाहिए जो दैनिक आसान लगाकर स्थिरथा से 16 माला का जाप करता हो, या करती हो।
शाहिदा : लेकिन कोई केवल दिखावे के लिए 16 माला का जाप करे, और शादी के बाद पता चले कि वो तो घटिया मनुष्य है, तो फिर क्या होगा?
वेदांत : केवल दिखावे के लिए एक महीने तक भी 16 माला का जाप करना असंभव है। शुरू में जाप करना बहुत ही कठिन है, मलीन व्यक्ति के लिए तो ये बिलकुल भी संभव नहीं है। इसलिए आपके ये विचार बिलकुल व्यर्थ हैं। प्रकृति ने हर मनुष्य में कूट-कूट के बुरे विकार भरे हुए हैं। इसलिए भले ही कोई अपने आपको कितना भी अच्छा और निष्ठावान दिखाने का प्रयास करे, पर उसमें मलीन विचार अवश्य होंगे। एक समय आएगा जब उसके विचार उसपर हावी होजाएंगे और वो प्रकृति के वशिभूत होकर कुकर्म कर देगा। इसलिए जाप करना बहुत आवश्यक है, केवल इसके द्वारा ही मनुष्य को प्रकृति और विकारों को हराने की शक्ति मिल पाती है।
शाहिदा : क्या भाग कर शादी करना उचित होता है? जैसा कि आजकल अधिकतर लोग करते हैं।
वेदांत : एक सामान्य मनुष्य के लिए ऐसा करना उचित नहीं है। लेकिन एक ऐसे मनुष्य के लिए जो शुद्ध कृष्ण भक्त हो, उसके लिए भाग कर शादी करना ही नहीं, बल्कि संसार में सबकुछ छोड़ देना भी उचित है। माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त-सम्बन्धी, और यहाँ तक कि उसके लिए स्वयं के जीवन का त्याग कर देना भी, धर्म और भगवान के लिए किये गए त्याग के समान होता है। पर शर्त यही है कि वो व्यक्ति शुद्ध कृष्ण भक्त होना चाहिए, जाप करने वाला होना चाहिए और भागवतम् तथा गीता का ज्ञान रखने वाला होना चाहिए। ऐसा जीवनसाथी बहुत विशेष है और कई जन्मों के पुण्य एक साथ उदय होने पर ही प्राप्त हो सकता है। अगर आपको इस प्रकार का व्यक्ति मिलता है तो समझना चाहिए कि आपने अपने इस जीवन या पूर्व के जीवन में बहुत अच्छे पुण्य किये होंगे। क्योंकि केवल वही आपको इस भौतिक जगत से मुक्ति दिलाने के योग्य होगा, जबकि अन्य लोग तो एक समय आने पर साथ छोड़ ही देंगे। यहाँ तक कि अभक्त माता-पिता भी अहंकार में आकर एक बार को आपका त्याग कर सकते हैं। पर शुद्ध कृष्ण भक्त का पति या पत्नी के रूप में साथ मिलना स्वयं भगवान का साथ मिलने के जैसा है। पर ऐसा व्यक्ति मिलना आज के युग में लगभग असंभव होता है। इसलिए कृष्ण से ये प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए कि मुझे एक ऐसा जीवनसाथी दो जो मुझे मोह और माया के बंधन से मुक्ति दिलाने में सहायता करे। हालांकि माता-पिता की सेवा करना भी अत्यंत आवश्यक है। किसी व्यक्ति के चक्कर में अपने माता-पिता को पूरी तरह छोड़ देने के विचार भी अनर्थ है।
शाहिदा : क्या विवाह में कुंडली मिलाना, जाती देखना और मांगलिक दोष देखना भी आवश्यक होता है?
वेदांत : एक कर्मकांड से जुड़े व्यक्ति के लिए ये सब चीज़े आवश्यक है। इसका अर्थ है कि जो लोग किसी स्वार्थ से देवी-देवताओं की पूजा करते है, उन लोगों को ये सब देखना चाहिए। लेकिन जो लोग केवल एक श्री कृष्ण की भक्ति करते हैं तथा नियमित रूप से 16 माला का जाप करते हैं, उन लोगों को कुंडली मिलाना, जाती और मांगलिक दोष देखना तो दूर, ये सब देखने का विचार भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि एक शुद्ध कृष्ण भक्त की जाती सिर्फ कृष्णभक्ति है, और जब वर-वधु दोनों ही कृष्ण भक्त होंगे, तो कुंडली मिलाने का कोई कारण ही नहीं बचेगा। साथ ही मांगलिक दोष भी कृष्ण भक्तों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। विश्व का कोई ज्योतिष ये नहीं बता सकता कि कृष्ण भक्त के जीवन में कब क्या होने वाला है, क्योंकि सारे गृह, नक्षत्र तो कृष्ण के सेवक हैं, और उनकी उँगलियों पर नाचते हैं। कृष्ण स्वयं अपने भक्त के जीवन को चलाते हैं, इसलिए कृष्ण भक्तों की तो बात ही निराली है।