(चौबीसवाँ विषय)
गुरु परंपरा, पितृ और भूत-प्रेत
शाहिदा : कुल परंपरा और पितृ पूजा क्या होता है?
वेदांत : प्रत्येक कुल की अपनी-अपनी गुरु परंपरा होती हैं, उस गुरु परंपरा के अनुसार ही हर किसी को चलना चाहिए। ये प्रत्येक मज़हब में होता है। सनातन धर्म के अनुसार पितरों के लिए यानी जो हमारे पूर्वज मर चुके हैं उनके लिए कई प्रकार की पूजाएँ करी जाती हैं। कुछ पूजाएँ केवल एक बार करी जाती हैं, और कुछ प्रतिवर्ष की जाती है। क्योंकि विश्व से अधिक आसक्त रहने से हमारी चेतना में काम और क्रोध जैसे विकार इस शरीर के मरने के बाद भी रह जाते हैं। आवश्यक नहीं है कि हम मरने के बाद तुरंत ही मुक्त हो जाएं, मृत्यु के बाद वाला जीवन पूर्ण रूप से हमारे कर्मों पर निर्भर करता है। जो लोग मरने से पहले कामी और क्रोधी थे, वो मरने के बाद भी कामी और क्रोधी ही रहते हैं। क्योंकि मरने के बाद तो हमारा केवल एक ही शरीर नष्ट होता हैं। मनुष्य के शरीर में रहते हुए हम यानी आत्मा के पास 2 प्रकार के शरीर रहते हैं। पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक जीव जिसमें भी जान है, उनका शरीर पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के तत्वों से बनता है। इन 5 तत्वों का शरीर नष्ट हो जाने के बाद हम में से अग्नि और जल, ये दो तत्व कम हो जाते हैं, उसी शरीर को ही भूत-प्रेत का शरीर कहा जाता है। भूत-प्रेत के शरीर को ‘सूक्ष्म' शरीर भी कहते हैं। प्रेत वो हैं जो बुरे कर्म करते हैं जबकि पितृ उन्हें कहते हैं जो मरने के बाद भी अपने परिवार वालों की रक्षा करने के कार्य में लगे हुए हैं। जो लोग किसी परिजन के मरने के बाद कराई जाने वाली पूजा जैसे - पिण्ड दान, जल की क्रिया आदि नहीं करते हैं उनके पितृ परेशान रहते हैं। क्योंकि मरने से पहले जिन्होंने बुरे कर्म किये हों और उनमें काम, क्रोध या लोभ जैसे विकार भी हों, तो मरने के बावजूद भी उनमें वो सब रह जाते हैं। बुरे कर्मों और विकारों के कारण प्रेत अशांति को प्राप्त होता है। प्रेत और पितृ दोनों को ही प्यास भी लगती है और भूख भी लगती हैं, उनको शारीरिक सम्बन्ध बनाने का मन भी करता है। लेकिन उनके पास कुछ करने के लिए शरीर नहीं होता है। हालांकि जो पितृ भगवान के शुद्ध भक्त होते हैं, वो तो मृत्यु के बाद तुरंत ही मुक्त हो जाते हैं।
शाहिदा : तो प्रेत लोग क्या करते हैं?
वेदांत : वो लोग भौतिक तृप्ति के लिए तड़पते रहते हैं और उसी के लालच में कोई तांत्रिक उन्हें पकड़ सकता है। प्रेत को जब तांत्रिक पकड़ लेता है तो उसे कई महीनों तक बोतल या मटके में बंद कर देता है। फिर तांत्रिक काले जादू की विद्या से प्रेत से बुरे कार्य करवाता है। आवश्यक नहीं है कि केवल तांत्रिक लोग ही प्रेतों से बुरे कार्य करवाएं, बल्कि विकारों के कारण से अधिकतर प्रेत लोग स्वयं ही दूसरे मनुष्यों के शरीर पर अधिकार करने का प्रयास करते हैं। प्रेत लोग स्वयं की प्रसन्नता तथा संतुष्टि के लिए मनुष्यों के शरीर का प्रयोग करते हैं। किसी भी प्रेत में जब काम वासना होती है तब वो मनुष्य के शरीर का प्रयोग करके इस इच्छा को भी पूरा कर सकता है। जिस पुरुष या स्त्री के कर्म अच्छे नहीं होते, उनका तेज यानि औरा कम होता है। ऐसे शरीर पर प्रेत-प्रेतनी अधिकार करके अपने मलीन शौक पूरे कर सकते हैं। लेकिन क्योंकि उन लोगों के पास वैसा शरीर नहीं है, जैसा अधिकतर लोग सोचते हैं। प्रेत बहुत ही सूक्ष्म होते हैं, वो शरीर के किसी एक भाग में ही सक्रिय रह सकते हैं। लेकिन प्रेत किसी के शरीर में घुसकर उसके सूक्ष्म शरीर के साथ दुष्कर्म कर सकते हैं। स्त्रियों को रात्रि को सपने में ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई पुरुष उनके साथ दुष्कर्म कर रहा है। और इसी प्रकार से पुरुषों को लगता है जैसे कोई भयंकर दिखने वाली महिला या चुड़ैल उनके साथ दुष्कर्म कर रही है। पर अधिकतर लोग उसे सपना या वहम समझकर उसपर ध्यान ही नहीं देते। पर वो सपना नहीं होता, वो सच्चाई होती है, आज के समय में ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है। हज़ारों पुरुष-स्त्रियां हैं जिनके साथ आये-दिन ऐसा होता है कि प्रेत उनके शरीर पर अधिकार करके, उनके शरीर एवं जीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं। जब कोई प्रेत मनुष्य के शरीर का भोग करता है, तब उससे मनुष्य को बहुत अधिक दर्द का अनुभव होता है। अपने आप ही शरीर पर नील पड़ने लगते हैं, बीमारियां बढ़ने लगती है। शास्त्रों में इस बात का भी स्पष्ट वर्णन है।
शाहिदा : पर ईश्वर ने भूतों को ऐसी शक्ति दी ही क्यों हुई है?
वेदांत : वैसे तो सूक्ष्म शरीर एक प्रकार से दण्ड के तौर पर मिलता है, लेकिन जो मनुष्य स्वयं बुरा या मलीन होता है, या फिर काम-क्रोध से भरा हुआ होता है, उसके शरीर को प्रेत वश में कर सकते हैं। इसका उपाय केवल हरि नाम है। आपको प्रतिदिन तेज-तेज स्वर में ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे' इस मंत्र का जाप करना चाहिए। न केवल जाप बल्कि चारों नियमों का पालन भी करना चाहिए। केवल मंत्र जाप और वैष्णव समाज के 4 नियमों का पालन करने से ही प्रेत छूट सकता है। अन्यथा कुछ भी करलो, किसी भी दर्गा या मंदिर चले जाओ, लेकिन प्रेत नहीं छूटेगा। आपके कर्म अच्छे होंगे और आप शुद्ध भक्त होंगे तो घर बैठे हुए भगवान का नाम लेनेपर भी नकारात्मकता भाग जाएगी। कोई भी पूजा किसी के शरीर से भूत-प्रेत, चुड़ैल, चांडाल, बेताल आदि को नहीं छुड़वा सकती है। ये सब हमारे कर्म और भक्ति पर ही निर्भर करता है। किसी पूजा से प्रेत कुछ समय के लिए दब अवश्य सकते हैं, लेकिन बाद में दुबारा लौट आते हैं। वेद-पुराणों के अनुसार पितरों के लिए की गयी पूजा और दान से उन्हें शांति तथा संतुष्टि प्राप्त होती है। हम पितरों के नाम पर जो कुछ भी दान देते हैं, एक अव्यक्त यानी न दिखने वाले साधन के द्वारा पितरों तक वही सब पहुँच जाता है।
शाहिदा : जैसाकि आपने बताया, अगर किसी व्यक्ति ने कृष्ण की भक्ति करी तब तो वो मरने के बाद तुरंत मुक्त हो जायेगा। पर अगर किसी व्यक्ति ने भक्ति नहीं करी और वो मर गया, तो फिर उसके लिए ये सब सुविधा क्यों है? जबकि उसे तो दण्ड ही मिलना चाहिए ना?
वेदांत : माता-पिता तथा पालन करने वालों की मृत्यु होने के बाद सही प्रकार से उनके लिए दान आदि केवल वही लोग करते हैं जो संस्कारी हों। अधिक नहीं तो कम ही सही पर उनके मन में अपने माता-पिता के लिए प्रेम और करुणा, दया अवश्य होती है। अपने बच्चों को दान पुण्य, सम्मान, प्रेम और करुणा की अच्छी शिक्षाएं देने के फल स्वरुप ही पितृ लोगों को ये सुविधा मिलती है। पर शास्त्रों में पितरों के लिए बताई गई पूजा को न किया जाए तब पितृ स्वयं तो दुखी होते ही हैं, साथ में अपने पूरे कुल को भी किसी न किसी कारण से दुखी कर देते हैं। पितरों का श्राप बहुत तेजी से लगता है इसलिए पितरों के लिए की जानें वाली पूजाएं बहुत अधिक आवश्यक होती है। ऐसा भी नहीं है कि अगर हम पितरों के लिए पूजा नहीं करेंगे तो हम लोगों ने भगवान के लिए जो भी पूजाएँ करी हैं, वो व्यर्थ हो जाएगी। पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती। अगर किसी कुल का एक मनुष्य भी भगवान श्री कृष्ण का शुद्ध भक्त बन जाता है, तो उसके सारे पितर स्वयं ही हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाते हैं।
शाहिदा : तो फिर पितरों के लिए पूजा की आवश्यकता ही क्या है?
वेदांत : क्योंकि भगवान कृष्ण का भक्त होने का दावा करने वाले हज़ारों लोगों में से विरला कोई एक ही शुद्ध भक्त होता है। कृष्ण का शुद्ध भक्त वही है जो भगवद गीता के ज्ञान का पूर्ण रूप से पालन करता हो। इसलिए गीता में अर्जुन को भी ये भय सता रहा था कि अगर युद्ध में उनका सारा कुल समाप्त हो गया तो फिर पितरों के लिए करी जाने वाली पूजा कौन करेगा? अर्जुन पितरों के लिए किये जाने वाले पूजा-पाठ, कर्मकांडों को तो जानते थे पर उन्हें भक्ति का वास्तविक अर्थ नहीं पता था। अर्जुन ये नहीं जानते थे कि धर्म से बड़ा कोई संबंध नहीं होता है। अगर ठीक से देखा जाये तो केवल श्रीहरिविष्णु यानी कृष्ण की भक्ति ही परम धर्म है। इसलिए हमें किसी भी दूसरे संबंध या कर्त्तव्य से ऊँचा कृष्णभावनामृत को समझना चाहिए। कृष्णभावनामृत एक ऐसा फल है जिसका रस पीकर भूत, प्रेत, चांडाल, चुड़ैल जैसी सभी पापयोनि वाले लोग भी परमगति यानि मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। कृष्ण की भक्ति करते हुए आपको कोई भी भूत, प्रेत, पितर, चांडाल जैसे लोग कष्ट नहीं दे सकते। क्योंकि कृष्ण की भक्ति ही एकमात्र सत्य है और बाकी जगत में सब कुछ माया या मिथ्या है। इसलिए भगवान से कभी कुछ भौतिक विषय मांगना भी नहीं चाहिए। मांगने का कार्य भिखारियों का है, न कि भक्तों का। इसमें बुराई तो नहीं है लेकिन भगवान को केवल माना जाता है, भगवान से मांगना अपने आप में ही मूर्खता है। क्या वो सर्वशक्तिमान ईश्वर आपकी परिस्थिति को नहीं जानता जो आप उनसे कुछ प्रार्थना कर रहे हो? एक शुद्ध भक्त को चाहिए कि वो अपने लिए कभी प्रार्थना न करे बल्कि केवल सुख या दुख, हर स्थिति में केवल प्रेम से कृष्ण का नाम पुकारें। कृष्ण भक्त द्वारा अगर दूसरों के लिए प्रार्थना करी जाए तो ठीक है, दूसरों के लिए करी जाने वाली प्रार्थना तुरंत प्रभाव डालती है।